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अनुभूति में दिनेश ठाकुर की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
आप का कैसा मुकद्दर
गम को पीकर
जब से हमने
मौलवी पंडित परेशा

अंजुमन में-
आईने से
आँगन का ये साया
ज़ख्म़ी होठों पे
जाने दिल में
गम मेरा
ढलती शाम है
तू जबसे मेरी
थक कर
दूर तक
नई हैं हवाएँ
बदन पत्थरों के
मुकद्दर के ऐसे इशारे
मुद्दतों बाद
रूहों को तस्कीन नहीं
शीशे से क्या मिलकर आए
सुरीली ग़ज़ल
हम जितने मशहूर
हम दीवाने
हर तरफ़

हो अनजान

 

गम को पीकर

गम को पीकर लोग अब जीने लगे हैं
खुद ब खुद अपना कफ़न सीने लगे हैं

एक खामोशी अजब छायी हुई है
खुद में खोने की सुरा पीने लगे हैं

इंकलाबे जोश के मंजर कहाँ अब
जुल्‍म के सैलाब में जीने लगे हैं

सरे म‍हफि़ल बहकते भूखे कदम जब
बोरियों पर कैसे तसमीने लगे हैं

और क्‍या ख्‍़वारी रही बाकी 'उपेन्‍दर'
जिसकी खातिर जुबाँ को सीने लगे हैं

३० मई २०११
 

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