अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' की रचनाएँ-

नए गीतों में-
किस तरह आये बसंत
कोई अपना यहाँ
देख नज़ारा दुनिया का
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं
शहर में मुखिया आए

हाइकु में-
हाइकु गज़ल

गीतों में-
आँखें रहते सूर हो गए
अपने सपने
ओढ़ कुहासे की चादर
कब होंगे आज़ाद हम
कागा आया है
चुप न रहें
झुलस रहा है गाँव
पूनम से आमंत्रण
बरसो राम धड़ाके से
भाषा तो प्रवहित सलिला है
मगरमचछ सरपंच
मत हो राम अधीर
मीत तुम्हारी राह हेरता
मौन रो रही कोयल
संध्या के माथे पर

सूरज ने भेजी है

दोहों में-
फागुनी दोहे
प्रकृति के दोहे

संकलन में-
मातृभाषा के प्रति- अपना हर पल है हिंदीमय

 

किस तरह आये बसंत

मानव लूट रहा प्रकृति को
किस तरह आये बसंत?

होरी कैसे छाये टपरिया?
धनिया कैसे भरे गगरिया?
गाँव लील कर हँसे नगरिया,
राजमार्ग बन गयी डगरिया
राधा को छल रहा सँवरिया
सुत
भूला माँ हुई बँवरिया

अंतर्मन रो रहा निरंतर
किस तरह गाये बसंत?

सूखी नदिया कहाँ नहाएँ?
बोल जानवर कहाँ चराएँ?
पनघट सूने अश्रु बहाएँ,
राई-आल्हा कौन सुनाएँ?
नुक्कड़ पर नित गुटका खाएँ
खलिहानों से आँख चुराएँ

जड़विहीन सूखा पलाश लाख
किस तरह भाये बसंत?

तीन-पाँच करते दो दूनी
टूटी बागड़ गायब थूनी
ना कपास, तकली ना पूनी
यांत्रिकता की दाढ़ें खूनी
वैश्विकता ने खुशियाँ छीनी
नेह नरमदा सूखी-सूनी

शांति-व्यवस्था मिटी गाँव की
किस तरह लाए बसंत?

३ जून २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter