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अनुभूति में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' की रचनाएँ-

नए गीतों में-
किस तरह आये बसंत
कोई अपना यहाँ
देख नज़ारा दुनिया का
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं
शहर में मुखिया आए

हाइकु में-
हाइकु गज़ल

गीतों में-
आँखें रहते सूर हो गए
अपने सपने
ओढ़ कुहासे की चादर
कब होंगे आज़ाद हम
कागा आया है
चुप न रहें
झुलस रहा है गाँव
पूनम से आमंत्रण
बरसो राम धड़ाके से
भाषा तो प्रवहित सलिला है
मगरमचछ सरपंच
मत हो राम अधीर
मीत तुम्हारी राह हेरता
मौन रो रही कोयल
संध्या के माथे पर

सूरज ने भेजी है

दोहों में-
फागुनी दोहे
प्रकृति के दोहे

संकलन में-
मातृभाषा के प्रति- अपना हर पल है हिंदीमय

  कोई अपना यहाँ

मन विहग उड़ रहा, खोजता फिर रहा
काश! पाये कभी- कोई
अपना यहाँ?

साँस राधा हुई, आस मीरा हुई,
श्याम चाहा मगर, किसने पाया कहाँ?
चैन के पल चुके, नैन थककर झुके-
भोगता दिल रहा
सिर्फ तपना यहाँ

जब उजाला मिला, साथ परछाईं थी
जब अँधेरा घिरा, सँग तनहाई थी
जो थे अपने जलाया, भुलाया तुरत-
बच न पाया कभी
कोई सपना यहाँ...

जिंदगी का सफर, ख़त्म-आरंभ हो
दैव! करना दया, शेष ना दंभ हो
बिंदु आगे बढ़े, सिंधु में जा मिले-
कैद कर ना सके,
कोई नपना यहाँ

३ जून २०१३

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