अनुभूति में
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
की रचनाएँ-
नए गीतों में-
शहर में मुखिया आए
हाइकु में-
हाइकु गज़ल
गीतों में-
आँखें रहते सूर हो गए
अपने सपने
ओढ़ कुहासे की चादर
कब होंगे आज़ाद हम
कागा आया है
चुप न रहें
झुलस रहा है गाँव
पूनम से आमंत्रण
बरसो राम धड़ाके से
भाषा तो प्रवहित सलिला है
मगरमचछ सरपंच
मत हो राम अधीर
मीत तुम्हारी राह हेरता
मौन रो रही कोयल
संध्या के माथे पर
सूरज ने भेजी है
दोहों में-
फागुनी दोहे
प्रकृति के दोहे
संकलन में-
मातृभाषा के प्रति-
अपना हर
पल है हिंदीमय |
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शहर में मुखिया आए
शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आए
जन-गण को
कर दूर निकट नेता-अधिकारी
इन्हें बनाएँ सूर छिपाकर कमियाँ सारी
सबकी कोशिश करे मजूरी
भूखी सुखिया
फिर भी गाए
है सच का
आभास कर रहे वादे झूठे
करते यही प्रयास वोट जन गण से लूटें
लोकतंत्र की लख मजबूरी,
लोभतंत्र
दुखिया पछताए
आए - गए
अखबार रँगे, रेला - रैली में
शामिल थे बटमार कर्म-चादर मैली में
अंधे देखें, बहरे सुनें,
मूक बोलें,
हम चुप रह जाएँ
३ जून २०१३ |