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अनुभूति में प्रभु दयाल की रचनाएँ-

कुंडलिया में-
छह कुंडलिया राजनीति से

गीतों में-
कुछ बात करें चुपके चुपके
खोल दूँगी खिड़कियाँ
भीतर की तनहाई
सुबह सुबह ही भूल गए
सूरज फिर से हुआ लाल है
हम नंगे पाँव चले आए

अंजुमन में-
घी शक्कर का रोटी पुंगा

दोनों खुश हैं
पी लो पीड़ा
बंदर बिगड़ते जा रहे हैं

क्षणिकाओं में-
दस क्षणिकाएँ

 

बंदर बिगड़ते जा रहे हैं

पूज्य बापू से झगड़कर आ रहे हैं
आजकल बंदर बिगड़ते जा रहे हैं

बोलकर कड़वे वचन क्या फायदे हैं
बात ये संसार को समझा रहे हैं

कान भी तो आजकल के कलमुहें
बस बुरा सुनने में ही सुख पा रहे हैं

देखकर अश्लील गंदे द्दश्य अब
नयन भी खुश हो रहे सुख पा रहे हैं

देख लो गांधी तुम्हारे शिष्य अब
किस तरह से आपको लजवा रहे हैं

२७ जून २०११

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