जगन्नाथ प्रसाद
बघेल

जन्म-तिथि - १ जनवरी १९५४ को सीस्ता (सादाबाद)
में।
कार्यक्षेत्र
काव्य की विविध विधाओं में सर्जन और शोध
प्रकाशित कृतियाँ-
दो काव्य-संग्रह 'स्वप्न और समय' तथा 'घुटने की पीर' प्रकाशित।
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कुण्डलिया
१
होती जिनकी जो समझ, जैसे सोच विचार।
ढलते वही स्वभाव में, बन चरित्र संस्कार।
बन चरित्र संस्कार, प्रगति अवनति तय करते।
यश, प्रताप, साफल्य, वही देते या हरते।
कह 'बघेल'कविराय, सोच ओछी, सब खोती।
जिनकी सोच उदार, प्रगति उनकी ही होती
२
आई आँच न साँच को, हुई सत्य की जीत।
सत्य जीत शूली चढ़ा, झूठ रहा भयभीत।
झूठ रहा भयभीत, जुगत छल बल की करता।
तपता रहता सत्य, निकष पर और निखरता।
कह 'बघेल ' कविराय, ग्रन्थ दे रहे दुहाई।
सच के भाग प्रशस्ति, झूठ के निंदा आई
३
फीका है जीवन वहाँ जहाँ मचे नित रार।
एक बात में से बनें, बातें जहाँ हजार।
बातें जहां हजार, बतंगड़ ही बनती हों।
अहंकार हों तीव्र, मुट्ठियाँ ही तनती हों।
कह 'बघेल' कविराय, न रुचता कहा किसी का।
करें जतन वे लाख, रहेगा जीवन फीका
४
बोलो मत चुप ही रहो, रहो छुपाये तत्व।
जहाँ आपकी बात को,मिले न उचित महत्त्व।
मिले न उचित महत्त्व, आपको हेठा मानें।
जो अपनी हर तुच्छ, बात को बड़ा बखानें।
कह 'बघेल 'कविराय,परिस्थितियों को तोलो।
नासमझों के बीच, उचित है, कुछ मत बोलो
५
राका तपी न सूर्य सी, काक न हुए मराल।
गंगाजल से सींच भी,नीम न हुए रसाल।
नीम न हुए रसाल, मूल गुण बदल न पाये।
धुले न मन के मेल, किसी के गंग नहाये।
कह 'बघेल' कविराय, स्रष्टि की व्यष्टि -विधा का।
अद्भुत है वैभिन्य, मूल गुण परम्परा का
१ अप्रैल २०१३ |