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साधना ठकुरेला

जन्म- ६ मार्च १९६७ को हाथरस में।
शिक्षा- स्नातक

प्रकाशित कृतियाँ-
कविता, गीत, लघुकथाएँ। कुछ पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।

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नेकी कर के भूल जा (कुंडलिया)


नेकी कर के भूल जा,मत कर उसको याद।
फल तुझको मिल जाएगा, कुछ दिन के ही बाद।
कुछ दिन के ही बाद,मिले यश, मान, बड़ाई,
दे सुख अमित,अपार, यही है नेक कमाई।
कहें 'साधना' सत्य, याद रखना जाने की,
मानव बनो प्रबुद्ध, करो तुम हर दिन नेकी।


आज़ादी की आड़ में, नारी हुई असभ्य।
रँगी पश्चिमी रंग में, खुद को समझे सभ्य।
खुद को समझे सभ्य, भूल बैठी मर्यादा,
सभ्य जनों की सीख, न उसको भाती ज्यादा।
कहें 'साधना' सत्य, कर रही खुद बर्बादी,
विस्मित हैं सब लोग, भला यह क्या आज़ादी।


वैरागी मन ज्ञान से, करे भक्ति का मेल।
ईश-मिलन की आस का, पूरा होता खेल।
पूरा होता खेल, मुक्ति-पथ पर बढ़ जाते
जन्म-जन्म के कष्ट,एक क्षण में मिट जाते।
कहें 'साधना' सत्य, लगन जिसको जब लागी,
प्रभु आकर दें मुक्ति, पूर्ण मन हो वैरागी।



महिमा न्यारी दान की, पर इतना लो जान।
पात्र सही हो दान का, इसकी हो पहचान।
इसकी हो पहचान, दान से छूटे माया।
बने लोक परलोक, चार दिन की है काया।
कहें 'साधना' सत्य, बात ग्रंथों में सारी,
करे आत्म-कल्याण, दान की महिमा न्यारी।


पीड़ा दें संसार में, कुछ अपने ही कर्म।
लेकिन जो अनभिज्ञ हैं, नहीं जानते मर्म।
नहीं जानते मर्म, दोष ईश्वर पर मढ़ते,
कोसें अपना भाग्य, कहानी नित नव गढ़ते।
कहे 'साधना' सत्य, सुखों की बाजे वीणा,
करते रहो सुकर्म, हरे ईश्वर सब पीड़ा।

२ सितंबर २०१३

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