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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 


खोटे युग में खरे रहे वे

बाबूजी थे
सीधे-सच्चे
खोटे युग में खरे रहे वे

अनजाने में चूक हुई
उस पर भी वे
जी-भर पछताये
थोड़े में ही रहे रहे सदा खुश
रिश्ते-नाते सभी निभाये

बरगद थे वे-
झेले पतझर
फिर भी, साधो, हरे रहे वे

छोटी-सी कमाई थी
लेकिन मन से थे
आकाश सरीखे
विपदा आये - दुक्ख न व्यापे
मन्त्र उन्हीं से हमने सीखे

बोझ हमारे
कष्टों के भी
अपने काँधे धरे रहे वे

पूजापाठ रोज़ करते थे
बाबूजी थे
ज्ञानी-ध्यानी
उनसे ही सीखी थी हमने
कविताई की औघड़ बानी

नेह निभाया
हाट-लाट की
माया से थे परे रहे वे

- कुमार रवीन्द्र
१५ सिंतंबर २०१४

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