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३. १०. २०११

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सूरज फिर से हुआ लाल

 

सूरज फिर से हुआ लाल है
नभ ने फेंका इन्द्रजाल है
स्वागत में
मुस्काए गुलमोहर
ठिल ठिल हँसने लगा ताल है।
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लहरों की
डाले गलबहियाँ
सीढ़ी करे प्रेम की बतियाँ
एक टक लीला लगीं देखने
जल में डूबीं सभी बटैयाँ
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पेड़ किनारे करें ठिठोली
तट के बजने लगे गाल हैं।
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पनघट पर
कह रही सहेली
जीवन एक अनबूझ पहेली
आज छोड़कर चले गये वे
जिनके संग जनम भर खेली
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बस यादें ही शेष रह गईं
लगती कोई नई चाल है।
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बने बनाए
मिटे घरौंदे
पल में हो गये सपने औंधे
जिनको शीश चढ़ाया हमने
वही फूल पैरों ने रौंदे
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रंग बदला है गिरगिट जैसा
मौसम का बेतुका हाल है।

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- प्रभु दयाल

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अंजुमन में-

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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