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अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. १०. २०१२

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जीने का अभ्यास

 

वादे खाकर भूख मिटाते
आँसू पीकर प्यास
हम करते हैं पेट काटकर
जीने का अभ्यास।

पन्ने-पन्ने फटे हुए हैं
उधड़ी जिल्द पुरानी
अपनी पुस्तक में लिक्खी है
दुख की राम कहानी
भूख हमारा अर्थशास्त्र है
रोटी है इतिहास।

शिल्पी, सेवक, कुली, मुकद्दम
खूब हुए तो भृत्य
नून-तेल के बीजगणित का
समीकरण साहित्य
चार दिवस कुछ खा लेते हैं
तीन दिवस उपवास।

प्रश्नपत्र सी लगे जिंदगी
जिसमें कठिन सवाल
वक्त परीक्षक बड़ा काइयाँ
करता है पड़ताल
डाँट-डपटकर दुःख-दर्दों का
रटवाता अनुप्रास।

सँभला करते हैं गिरकर हम
आगे बढ़ते हैं
अपने श्रम से हम दुनिया
के सपने गढ़ते हैं
अंतरिक्ष से कभी न मांगा
मुठ्ठी भर आकाश।

--डॉ. अजय पाठक

इस सप्ताह

गीतों में-

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अजय पाठक

अंजुमन में-

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सुवर्णा दीक्षित

दिशांतर में-

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विनोद तिवारी

छोटी कविताओं में-

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विजय नाहटा

पुनर्पाठ में-

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रूपहंस हबीब

पिछले सप्ताह
२४ सितंबर २०१२ के अंक में

गीतों में-

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दिगंबर नासवा

अंजुमन में-

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बल्ली सिंह चीमा

छंदमुक्त में-

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मनोज श्रीवास्तव

कुंडलिया में-

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ज्योत्सना शर्मा

पुनर्पाठ में-

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दीपक वाईकर

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
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