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५. ८. २०१३

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जब तक अपने स्वप्न रहेंगे

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जब तक अपने स्वप्न रहेंगे
स्वप्नों के संघर्ष रहेंगे।

जब तक
फूलों में रंग-खुशबू
जब तक पत्तों में हरियाली
धरती पर जीवन की हलचल
जीवन के होठों
पर लाली
तब तक
स्वप्नों से संघर्षों
वाले अपने छंद रहेंगे।

जब तक अपने स्वप्न रहेंगे
स्वप्नों के संघर्ष रहेंगे।

खेत-खेत
लहराती फसलें
नदी-नदी का बहता पानी
खिलखिलाहटें जब तक जिंदा
और बदन में
भरी जवानी
रचना और
ध्वंस में जारी
युक्त सृजन, स्वच्छंद रहेंगे।

जब तक अपने स्वप्न रहेंगे
स्वप्नों के संघर्ष रहेंगे।

-कुमार दिनेश प्रियमन

इस सप्ताह

गीतों में-

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कुमार दिनेश प्रियमन

अंजुमन में-

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नितिन जैन

छंदमुक्त में-

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कात्यायनी

कुंडलिया में-

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रघुविन्द्र यादव

पुनर्पाठ में-

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शैल अग्रवाल

पिछले सप्ताह
२९ जुलाई २०१३ के अंक में

गीतों में-

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संध्या सिंह

अंजुमन में-

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सुल्तान अहमद

छंदमुक्त में-

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बद्रीनारायण

दोहों में-

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संदीप सृजन

पुनर्पाठ में-

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विजय ठाकुर

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
 

 

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