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१२. ५. २०१४

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आओ साथी बात करें हम

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आओ साथी बात करें हम
अहसासों की रंगोली से
रिश्तों में जज़्बात भरें हम..

शोर भरी ख्वाहिश की बस्ती
की चीखों से क्या घबराना
कहाँ बदलती दुनिया कोई
उठना, गिरना,
फिर जुट जाना
स्वर-संगम से अपने श्रम के
मन कव्वाली-नात करें हम..

सूखी बाड़ी, कंटक झाड़ी
निर्मम-निष्ठुर जीवन कितना
चाहत-मरुथल सपन बगूले
प्यासी भटकन
हतप्रभ जीना
द्वेष-दमन की दुपहरिया को
मिलजुल, आ, सुख-रात करें हम.. .

हामी भर-भर रात सिसकती
दिन का हासिल ’स्वर क्रंदन के’
उमस भरी है झूली खटिया
जटिल हुए
उच्छ्वास पवन के
निशा कठिन है साथी मेरे
आओ मिलजुल प्रात करें हम..

रिश्तों की क्यों हो परिभाषा
रिश्तों के उन्वान बने क्यों
जब मतवाला जीनेवाले
सम्बन्धों में
नाम चुने क्यों..
तुम हो, मैं हूँ, मिलजुल हम हैं
इतने से बारात करें हम..

-सौरभ पाण्डेय

इस सप्ताह

गीतों में-

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सौरभ पाण्डेय

अंजुमन में-

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अनिल मिश्रा

छंदमुक्त में-

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विनय कुमार

दोहों में-

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शशिकांत गीते

पुनर्पाठ में-

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मनीष जैन





पिछले सप्ताह
५ मई २०१४ के अंक में

गीतों में-

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शंभु शरण मंडल

नई हवा में-

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भावना

छंदमुक्त में-

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करुणेश किशन

कुंडलिया में-

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कल्पना रामानी

पुनर्पाठ में-

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कंचन मेहता

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   
 

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