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१. ९. २०१४

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आज जहाँ रेतीले तट हैं

     

आज जहाँ रेतीले तट हैं 
रस की नदी कभी
बहती थी

चौड़ेपन
का गर्व नदी का 
किसी बाँध ने सोख लिया है
किसी वर्जना के करतल ने
वेग हँसी का रोक लिया है

आज मौन के जो मरघट हैं
ज़िन्दादिली कभी
रहती थी

छल के
समीकरण में उलझा
गुणा-भाग जितना भी सीखा
उत्तर मधुर कहाँ से खोजें
प्रश्नपत्र ही जब हो तीखा

अब चुप-चुप वे बूढ़े वट हैं
जिनकी छाँह कथा
कहती थी

- पंकज परिमल

इस सप्ताह

गीतों में-

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पंकज परिमल

अंजुमन में-

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सूबे सिंह सुजान

छंदमुक्त में-

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ओम प्रकाश

कुंडलिया में-

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तोताराम सरस

पुनर्पाठ में-

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राकेश कौशिक

पिछले सप्ताह
२५ अगस्त २०१४ के अंक में

गीतों में-

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चंद्रप्रकाश
पांडेय

अंजुमन में-

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अर्चना पांडा

छंदमुक्त में-

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दर्शवीर

ताँका में-

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डॉ. सरस्वती माथुर

पुनर्पाठ में-

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राजेश जोशी

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी