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२४. ११. २०१४-

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गीत एक टूटा है

     

गीत एक टूटा है
व्योम से सितारा सा
विवश लौट आया है
दिवस थका हारा सा

दफ्तर में अफसर की
झिड़की है घातें हैं
बातूनी फायल की
दगाबाज बातें हैं

सड़कों से सहनों तक
पसरा है पारा सा

मीठी मुस्कानें है
घातक इरादे हैं
मछली की आहट पर
बगुले दम साधे हैं

दिन छेड़े बजता है
दिनभर इकतारा सा

जनमेजय जागें अब
धनवंतरि आये अब
तक्षक ने काटा है
मंत्र कुछ जगायें अब

लहरों में हलचल है
डूबता किनारा सा।

- रणवीर भदौरिया

इस सप्ताह

गीतों में-

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रणवीर भदौरिया

अंजुमन में-

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विजय प्रताप आँसू

छंदमुक्त में-

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राघवेन्द्र तिवारी

कहमुकरी में-

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डॉ. प्रदीप शुक्ल

पुनर्पाठ में-

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सारिका कल्याण

पिछले सप्ताह
 १७ नवंबर २०१४ के अंक में

शिशुगीतों में-
संजीव सलिल

गीतों में-
राम नारायण रमण

अंजुमन में-
प्राण शर्मा

छंदमुक्त में-
ब्रज श्रीवास्तव

पुनर्पाठ में-
शांति चौधरी

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी