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 पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति-तुक-कोश

१६. ३. २०१५-

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पत्र खोलो

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आज की है डाक में
ये तह किया इक पत्र खोलो

गोंद है संकोच का मुख पर
भला वह कब छुटेगा
देख कर फाड़ो किनारों से
नहीं तो ख़त फटेगा

भेदती हर आँख से
थोड़ा छिपाकर पत्र खोलो

ध्यान देना मत लिखावट पर
न भाषा-व्याकरण पर
पढ़ सको तो पढ़ो
क्या लिक्खा हुआ अंतःकरण पर

ग़ैर के हाथों पड़े ना
यह तुम्हारा पत्र खोलो

रेख जो तिरछी खिंची है
हो न उसकी दृष्टि तिरछी
आज मरहम दे रही वो याद
जो थी तीक्ष्ण बरछी

कब लिखा होगा न जाने
आज पहुँचा पत्र खोलो

- पंकज परिमल

 

इस सप्ताह

गीतों में-

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पंकज परिमल

अंजुमन में-

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धर्मेन्द्र कुमार सिंह सज्जन

छंदमुक्त में-

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पंकज त्रिवेदी

दोहों में-

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राजेन्द्र सारथी

पुनर्पाठ में

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संगीता मनराल
 

पिछले सप्ताह
९ मार्च २०१५ के अंक में

गीतों में-

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शशिकांत गीते

अंजुमन में-

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राकेश जोशी

छंदमुक्त में-

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रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

हाइकु में-

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सरस्वती माथुर

पुनर्पाठ में

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जगदीश जोशी साधक

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी