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२२. ६. २०१५-

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चमक बेला के फूलों की

 

नूर केसर का चमक बेला के फूलों की
मोहिनी तुझमें लहक बेला के फूलों की

चूम लें मदहोशियों में ज़ुल्फ़, गालों को
है बड़ी नादाँ ललक बेला के फूलों की

लिख रहे हैं डायरी के वर्क़ पर ग़ज़लें
कौन समझेगा कसक बेला के फूलों की

उन चुनींदा पंछियों के बोल मीठे हैं
सीख ली जिनने चहक बेला के फूलों की

ले रही अँगड़ाइयाँ रुत बेकली दिल में
है मदिर सचमुच लचक बेला के फूलों की

देवता आकर ज़मीं पर मौज़ करते हैं
देख ली जबसे झलक बेला के फूलों की

रख दिए दोने में गंगा-आरती निखरी
बस गई जल में महक बेला के फूलों की

जब बहारों के पयम्बर कारवाँ में थे
संग थी उनके गमक बेला के फूलों की

- अश्विनी कुमार विष्णु

इस सप्ताह
बेला विशेषांक-२ में

गौरवग्राम में-

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धर्मवीर भारती

अंजुमन में-

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अश्विनी कुमार विष्णु

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कल्पना रामानी

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पंकज परिमल

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राजेन्द्र स्वर्णकार

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संजू शब्दिता

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सुरेन्द्रपाल वैद्य

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हरिवल्लभ शर्मा

कुंडलिया में-

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परमजीत कौर रीत

दोहों में-

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अरुण कुमार निगम

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आभा सक्सेना

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ऋता शेखर मधु

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कल्पना मिश्रा बाजपेयी

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ज्योतिर्मयी पंत

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मंजु गुप्ता

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सुबोध श्रीवास्तव

हाइकु में-

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डॉ सरस्वती माथुर

छंदमुक्त में-

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अश्विन गाँधी

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आभा खरे

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उर्मिला शुक्ल

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परमेश्वर फुँकवाल

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मंजुल भटनागर

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संतोष कुमार

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

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