पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. २. २०१६

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जो असंभव था

 

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जो असम्भव था,
उसे सम्भव किया मैंने।
तब कहीं ‘सिन्दूर’ का जीवन जिया मैंने
1
मैं प्रणय के
आदि-क्षण से देह के बाहर रहा
मौन टूटा छन्द में, जो कुछ कहा गा-कर कहा
शब्द में, निःशब्द को भी गा दिया मैंने
तब कहीं ‘सिन्दूर’ का जीवन
जिया मैंने
1
प्राण हिम-शीतल
किया, रवि के प्रखर उत्ताप ने
काल के सीमान्त लाँघे, शून्य के आलाप ने
अमृत से दुर्लभ, अतल दृग-जल पिया मैंने
तब कहीं ‘सिन्दूर’ का जीवन
जिया मैंने
1
मैं गिरा
गिरि-शृंग से, तो एक निर्झर हो गया
घाटियों में इस तरह उतरा, कि सागर हो गया
संक्रमण-सुख को सनातन कर लिया मैंने
तब कहीं ‘सिन्दूर’ का जीवन
जिया मैंने
1
- रामस्वरूप सिंदूर

इस पखवारे

गीतों में-

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रामस्वरूप सिंदूर

अंजुमन में-

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अनिता मांडा

छंदमुक्त में-

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भोलानाथ कुशवाहा

छोटी कविताओं में-

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सुधीर विद्यार्थी

पुनर्पाठ में-

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निर्मला गर्ग

पिछले पखवारे
१५ जनवरी २०१६ को प्रकाशित

गीतों में-
अनिलकुमार वर्मा

अंजुमन में-
बसंत शर्मा

छंदमुक्त में-
मनोरंजन तिवारी

दोहों में-
टीकमचंद ढोडरिया

पुनर्पाठ में-
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी