अनुभूति में
कुमार दिनेश प्रियमन
की रचनाएँ-
गीतों में-
जब तक अपने
स्वप्न रहेंगे
नई सुबह के उगते सूरज
नदी की मछलियाँ हैं
हम मानव बम बन बैठे |
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नदी की मछलियाँ
हैं
हम नदी
की मछलियाँ हैं, जल-तरंगों में पली हैं
मगरमच्छों से बचीं, तो मछेरों में
जा फँसी हैं।
गुम लिफाफों
पर लिखे हुए पते
कबूतर हम, पर- हमारे पर कटे
समूचा आकाश उड़ने की तमन्नाएँ
मिली हैं।
यह शहर है
या, कि कोई लाशघर
लाशघर कोई कि-अपना ही शहर
रात-दुर्घटना जहाँ है और दिन में
खलबली है।
मोम कितना
गल चुका है- जिंदगी का
आ सका क्या, कहीं? जीने का सलीका
रोशनी कितनी, कहाँ बाती
बची है।
५ अगस्त
२०१३
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