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उजले उजले
लोग
मंदिर वाले गाँव जहाँ पर
उजले उजले लोग
कौन वहाँ पर बसा रहा है
नरभक्षी से ढोंग
सुबह सुबह मुस्काने जिनके
घर घर आतीं-जातीं
और दोपहरी खेतों में जा
उनकी थकन मिटाती
संध्यायें उनके संग चलतीं
आपस में बतियातीं
उनके भाई-चारे में फिर
कौन भर रहा रोग
जिनकी ईद, दशहरा, होली
दीवाली संग होती
उनके चौपालों में हँसते
सहयोगों में मोती
उनका सुख अपहरण करा के
माँगे कौन फिरोती
जिनकी साथ नमाजें होतीं
साथ साथ में भोग
उनकी नींद हराम करो मत
मजहब को बदनाम करो मत
उनके रिश्ते कभी न सुलझे
तुम ऐसे विराम धरो मत
जिन का सुख-दुख एक बेल पर
जिन का ह्रदय निरोग
उनकी जीवन कथा में आखिर
कौन लिखता वियोग
३० मार्च २०१५
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