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1. 8. 2007  

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मेह क्या बरसा

मेह क्या बरसा घरों को लौट आए
नेह वाले दिन

हाट से लौटे कमेरे मुश्किलों से मन बचा कर
लौट आए छंद में कवि शब्द की भेड़ें चरा कर
मेह क्या बरसा भले लगने लगे हैं
स्याह काले दिन

कोप घर से लौट धरती ने हरी मेहँदी रचाई
वीतरागी पंछियों ने गीतरागी धुन बनाई
मेह क्या बरसा लगे मुरली बजाने
गोप ग्वाले दिन

कुरकुरे रिश्ते बने कड़वे कसैले पान थूके
उमंगें छत पर चढ़ीं मैदान में निकले बिजूके
मेह क्या बरसा सभी ने हाथ में लेकर
उछाले दिन

-महेश अनघ

 

इस सप्ताह वर्षा विशेषांक में वर्षा की बौछारों से भीगी 120 रचनाओं के सचित्र संकलन
वर्षा मंगल
में प्रस्तुत हैं-

  • 50  मधुर गीत

  • 54 मोहक कविताएँ

  • 30 हरियाले हाइकु

  • 4 रसरंग ग़ज़लें

  • 1 गुदगुदी हास्य व्यंग्य की

  • 6 बौछारें क्षणिकाओं की

  • और ढेर से दमदार दोहे

पिछले सप्ताह
(24 जुलाई 2007 के अंक में)
 

अंजुमन में-
नीरज गोस्वामी

कविताओं में-
संजीव कुंदन

देशांतर में-
अनिल प्रभा कुमार

हाइकु में-
अर्बुदा ओहरी

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1–9–16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी