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24. 10. 2007  

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बौराए बादल
1

क्या खाकर बौराए बादल?
झुग्गी-झोंपड़ियाँ उजाड़ दीं
कंचन-महल नहाए बादल!

दूने सूने हुए घर
लाल लुटे दृग में मोती भर
निर्मलता नीलाम हो गयी
घेर अंधेर मचाए बादल!

जब धरती काँपी, बड़ बोले-
नभ उलीचने चढ़े हिंडोले,
पेंगें भर-भर ऊपर-नीचे
मियाँ मल्हार गुँजाए बादल!

काली रात, नखत की पातें-
आपस में करती हैं बातें
नई रोशनी कब फूटेगी?
बदल-बदल दल छाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!

जानकीवल्लभ शास्त्री

 

इस सप्ताह

गीतों में-

कविताओं में-

दोहों में-

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(16 अक्तूबर 2007 के अंक में)

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मनोहर सहदेव और

शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

इस माह के कवि में-
गिरि मोहन गुरु

कविताओं में-
प्रेमरंजन अनिमेष

दिशांतर मे
डेन्मार्क से चांद हदियाबादी

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कवि कुलवंत सिंह

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