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८. ३. २०१०

अंजुमन उपहार काव्य संगमगीत गौरव ग्रामगौरवग्रंथ दोहे पुराने अंक संकलनहाइकु
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आ गया आतंक1

  हाथ में
बंदूक लेकर
आ गया आतंक!

काँपता बाज़ार
थर्राते हैं चौराहे
स्वप्न-पक्षी के
परों को अब कोई बाँधे

लो, खुले आकाश पर
गहरा गया आतंक!

आज रिश्ते काँच की
दीवार से लड़ते
देहरी पर नई कीलें
ठोंककर हँसते

सुर्ख आँखों पर उतरकर
छा गया आतंक!

सभ्यता विश्वास के घऱ
हो गई शैतान
सत्य के नीचे खुली है
झूठ की दूकान

रक्त-सिंचित पाँव धर
बौरा गया आतंक!

--डॉ. ओमप्रकाश सिंह

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

दोहों में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
१ मार्च २०१० के होली विशेषांक में

शशि पाधा, ओमप्रकाश तिवारी, कमलेश कुमार दीवान, देवमणि पांडे, पं. नरेन्द्र शर्मा, पूनम श्रीवास्तव, रावेंद्रकुमार रवि, रमेशचंद्र शर्मा आरसी, डॉ.रूपचंद्र शास्त्री मयंक, लावण्या शाह, डॉ. वीरेन्द्र आज़म, संजीव सलिल के गीत,

नीरज गोस्वामी और सतपाल ख़याल की ग़ज़लें,

कृष्ण शलभ, गिरीश पंकज, निर्मला जोशी और  श्यामल सुमन के दोहे तथा डा. सरस्वती माथुर की छंदमुक्त रचना।

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
   
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