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७. ६. २०१०

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आओ बैठें
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  आओ बैठे बाग में कचनार की बातें करें,
दर्द की चादर बुनें, दो प्यार की बातें करें।

बातें तब की भी करें जब तुम हमारे साथ थे,
डूबती थी नाव फिर भी हाथ में ये हाथ थे,
आँसुओं की धार ले, मँझधार की बातें करें।

धड़कनों के बीच गुजरे थे युगों के दरमियाँ,
खून होते ख्वाब लेते थे हमारे इम्तिहाँ,
सूनी आँखों से झाँकते,चीत्कार की बातें करें।

देख नंगे पाँव काँटें खुद महावर रच गए,
हाथों के छाले गए और मेंहदी से सज गए,
चल फसल की कब्र पर शृंगार की बातें करें,

लग रही है आग देखो बस्तियों और गाँव में,
लोग बैठे हैं यहाँ पर अस्थियों की छाँव में,
बैठ बंजर भूमि पर मल्हार की बातें करें।

इन दरख्तों से उतरकर चाँदनी आती नहीं,
लालटेनों से लिपटती धूप की बाती नहीं,
घुप अँधेरा छा रहा अंगार की बातें करें।

हाथों में थामे मशालें और अँधेरा है घना,
लुट रहीं हैं डोलियाँ औ’ लुट रहा है बचपना,
दोष किस्मत का नहीं, कहार की बातें करें।

मोल लेकर बाँह तक सब चल रहे हैं अब यहाँ,
काट डाले हाथ उनके जो थे मेहनतकश यहाँ,
बाजार की इस चौंध से इनकार की बातें करें।

मेघ चलकर आए अबतक मेरे खेतों में कई,
प्यासी मिट्टी में है जलते पाँव उनके सुरमई,
शामियाने में खड़ी सरकार की बातें करें।

दोनों आँखों बीच दूरी तो सदा कायम रही,
ढलते आँसू में मिलन की आरजू हरदम रही,
दर्द के रिश्तों से हट अभिसार की बातें करें।

साहिलों पे आग थी, धारा नदी की बँट गई,
जो दिलों में बह रही थी वो नदी ही फट गई,
चुस्कियाँ ले चाय की, बेकार की बातें करें।

तेरी महफिल छोड़कर अबके चला जाऊँगा मैं,
अपने गीतों में ही तुमको फिर नजर आऊँगा मैं,
गुनगुनाना फिर कभी दो प्यार की बातें करें।

--अमित कुलश्रेष्ठ
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