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अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. ६. २०२२     

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कुण्डलिया हाइकु अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर नवगीत की पाठशाला रचनाकारों से

इस नदी

 

 

इस नदी के
घाट पर हम ठाठ से रम जाएँगे

इस नदी का
जल हमें बेहद लुभाता है
हो न हो पिछले जनम का एक नाता है
हम नदी को मान देकर गीत
इसके गाएँगे

इस नदी के
घाट पर हम ठाठ से रम जाएँगे

इस नदी की
धार हमको खूब भाती है
साथ पाकर यह हमारा झूम जाती है
धार की हर बूँद पावन है
इसे सहलाएँगे

इस नदी के
घाट पर हम ठाठ से रम जाएँगे

आँख में भर
हम कछारों को निहारेंगे
देह नदिया की जहाँ टूटी सँवारेंगे
रूप पहले-सा सजीला हम
इसे लौटाएँगे

- मनोज जैन मधुर

इस माह

गीतों में-

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मनोज जैन मधुर

अंजुमन मे-

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परमजीत कौर रीत

छंदमुक्त में-

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मधु शुक्ला

दिशांतर में-

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ऋचा जैन

दोहों में-

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सुरेश कुमार पंडा

विगत माह

गीतों में-

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डॉ. प्राची

अंजुमन मे-

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सतपाल ख़याल

छंदमुक्त में-

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शशिकांत गीते

दिशांतर में-

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हरिहर झा

दोहों में-

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देवेश दीक्षित देव

विज्ञानकु में-

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सुभाषचंद्र लखेड़ा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन