पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. ७. २०२२     

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कुण्डलिया हाइकु अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर नवगीत की पाठशाला रचनाकारों से

ज़रा ठहरो

 

 

मिटाओ मत जरा ठहरो अभी तो चाह बाकी है
अभी मंजिल कहाँ तय की
अभी तो राह बाकी है

अभी मैंने कहाँ
मधुमास का शृंगार देखा है
कहाँ मधुयामिनी को चन्द्र का उपहार देखा है
उमड़ते मेघ का उत्साह, बरसती रिमझिमी बूँदें
कहाँ तपती धरा की पीर काउपचार देखा है
लुटी सी डालियों पर पल्लवों का
प्यार बाकी है

अभी तो राह
की दूरी दिशा ही जान पाए हैं
हवा का रुख किधर रहता नहीं पहचान पाए हैं
लड़ाई का रहा इतिहास काँटों से, अंधेरे से
हुई भूलें कहाँ परिणाम को अनुमान पाए हैं
हृदय चाहे हुआ आहत मगर
विश्वास बाकी है

सुनो मेरी सुनो
यह जिंदगी कुछ और जीने दो
पड़ी है चिन्दियाँ बिखरी, वसन अभिराम सीने दो
सदा कड़वे कसैले घूँट ही पीते रहे हैं हम
मधुर सौंदर्य का प्याला हमें भर चाह पीने दो
समय का हाथ छूटा भीड़ में
यह आह बाकी है

- गिरिजा कुलश्रेष्ठ

इस माह

गीतों में-

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गिरिजा कुलश्रेष्ठ

अंजुमन मे-

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ओंकार सिंह विवेक

छंदमुक्त में-

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अमित खरे

दिशांतर में-

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विनीता तिवारी

दोहों में-

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कुमार गौरव अजीतेन्दु

पुनर्पाठ में-

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आचार्य भगवत दुबे

विगत माह

गीतों में-

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मनोज जैन मधुर

अंजुमन मे-

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परमजीत कौर रीत

छंदमुक्त में-

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मधु शुक्ला

दिशांतर में-

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ऋचा जैन

दोहों में-

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सुरेश कुमार पंडा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन