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अनुभूति में भरत तिवारी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
किस को नज़र करें
जब नकाब-ए-दोस्ती

दौर है तमाशे का
बुद्धू बक्से
सियासत से बच न पायी

'

किसको नजर करें

किस को नज़र करें अपनी नज़र यहाँ
इक ख्वाब जो सजाया बरपा कहर यहाँ

कुछ तो सवाब के, तू भी काम कर यहाँ
दो - चार दिनों की है, सबकी बसर यहाँ

हमने मकान की इक ईंट थी रखी
बदला तिरा इरादा, छूटा शहर यहाँ

मजबूत है अकीदा, रब इश्क में मिला
मजबूरि-ओ चलाकी, है बे-असर यहाँ

हर शय चला रहा जो, आता नहीं नज़र
किसको दिखा रहा तू, अपना हुनर यहाँ

वो दोस्ती न करना, जो ना निभा सको
आसां नहीं परखना, सबका जिगर यहाँ

तुम खेल खूब खेलो, वाकिफ़ रहो मगर
आशिक नहीं रहा अब, तेरा ‘शजर’ यहाँ

११ फरवरी २०१३

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