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अनुभूति में दिनेश ठाकुर की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आईने से
आँगन का ये साया
ज़ख्म़ी होठों पे
जाने दिल में
गम मेरा
ढलती शाम है
तू जबसे मेरी
थक कर
दूर तक
नई हैं हवाएँ
बदन पत्थरों के
मुकद्दर के ऐसे इशारे
मुद्दतों बाद
रूहों को तस्कीन नहीं
शीशे से क्या मिलकर आए
सुरीली ग़ज़ल
हम जितने मशहूर
हम दीवाने
हर तरफ़

हो अनजान

  हम जितने मशहूर

हम जितने मशहूर हुए
खुद से उतने दूर हुए।

वो सब लोग हुए ग़ारत
जो यों ही मगरूर हुए।

जितने उसके साथ कटे
वो मौसम मखमूर हुए।

हवा चली है कुछ ऐसी
सब चेहरे बेनूर हुए।

हिज्र में फिर बादल बरसे
फिर गहरे नासूर हुए।

दिल भी दो और दर्द सहो
यह अच्छे दस्तूर हुए।

नज़र उधर न कर साक़ी
वो सारे मामूर हुए।

सब सपने थे शीशे के
आखिर चकनाचूर हुए।

जो अपनी धुन में डूबे
मीरा, ग़ालिब, सूर हुए।

८ फरवरी २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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