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अनुभूति में गौतम राजऋषि की
रचनाएँ -

नई रचनाओं में-
अबके ऐसा दौर
एक मुद्दत से
उँड़स ली
खबर मिली है
जल गई है फ़सल

वो जब अपनी खबर

अंजुमन में-
दूर क्षितिज पर सूरज चमका
सीखो आँखें पढ़ना
हवा जब किसी की कहानी
हादसा हो जाएगा

  अब के ऐसा दौर

अब के ऐसा दौर बना है
हर ग़म काबिले-गौर बना है

उसके कल की पूछ मुझे, जो
आज तेरा सिरमौर बना है

फिर से चाँद को रोटी कहकर
आँगन में दो कौर बना है

बंद न कर दिल के दरवाजे
ये हम सब का ठौर बना है

इस्कूलों में आये जवानी
बचपन का ये तौर बना है

तेरी-मेरी बात छिड़ी तो
फिर किस्सा कुछ और बना है

झगड़ा है कैसा आखिर, जब
दिल्ली-सा लाहौर बना है

५ अप्रैल २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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