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पिघलकर पर्वतों से
मन कभी घर में रहा
हर नया मौसम

 

कल का युग हो जाइये

कल का युग हो जाइये, अगली सदी हो जाइये
बात यह सबसे बड़ी है, आदमी हो जाइये

आपको जीवन में क्या होना है यह मत सोचिए
दुख में डूबे आदमी की ज़िंदगी हो जाइये

हो सके तो रास्ते की इस अँधेरी रात में
रोशनी को ढूँढि़ए मत, रोशनी हो जाइये

रेत के तूफां उठाती आ रही हैं आंधियाँ
हर मरुस्थल के लिये बहती नदी हो जाइये

जागते लम्हों में कीजे ज़िंदगी का सामना
नींद में मासूम बच्चे की हँसी हो जाइये

१३ फरवरी २०१२

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