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मुझको खंजर
यार पुराने
यों ही उदास है दिल
वो नज़रों से

अंजुमन में-
आँखें पलकें गाल भिगोना
ख्वाब देखे थे
गुमसुम तनहा
जरा सी देर में
शजर पर एक ही पत्ता
सहमा सहमा

  ख़्वाब देखे थे

ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ
मुश्किलें हैं सफ़र में क्या क्या कुछ

फूल से जिस्म चाँद से चेहरे
तैरता है नज़र में क्या क्या कुछ

तेरी यादें भी अहल-ए-दुनिया भी
हम ने रक्खा है सर में क्या क्या कुछ

ढूढ़ते हैं तो कुछ नहीं मिलता
था हमारे भी घर में क्या क्या कुछ

शाम तक तो नगर सलामत था
हो गया रात भर में क्या क्या कुछ

हम से पूछो न ज़िंदगी 'परवाज़'
थी हमारी नज़र में क्या क्या कुछ

२ नवंबर २००९

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