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अनुभूति में क़ैश जौनपुरी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
उजड़े हुए चमन
वो जाने कहाँ हैं
हम तुम्हारे अब भी हैं
हम तेरे हो गए

हम दिल से हैं हारे

कविताओं में-
दुनिया बहुत आगे जा चुकी है
वो बुड्ढा

 

वो बुड्ढा

वो बुड्ढा
वहीं पड़ा रहता था, अकेले
उसकी चारपाई भी
उसी के जैसी थी
टेढ़ी, अकड़ी हुई
को पूछने वाला नहीं
उसने कितनों को पूछा होगा
लंबी उम्र गुज़ारी है उसने
आज उसका वक़्त ख़राब है
शायद, उसके कर्मों का फल हो
लेकिन, दुनिया उसे भूल गई है
यही शिकायत है मुझे
सुबह-शाम कुछ खिला देते हैं
बस ज़िम्मेदारी ख़त्म
मुझे अजीब नज़रों से देखता है
शायद, उसकी कुछ मदद करूँ
मगर, मैं क्यों करूँ ऐसा
सबको अच्छा नहीं लगेगा
ज्य़ादा कुछ कर भी नहीं सकता
सिवाय, सहानुभूति के
शायद, वो यही चाहता हो
पर, वो भी तो आदमी ही है
उम्मीद लगा बैठेगा, तब क्या होगा
तब अफसोस, मुझे होगा
मैं इसके लिए, कुछ कर नहीं पाया
इससे तो अच्छा था
उसके पास, गया ही न होता
जाऊँगा भी नहीं
सुबह-शाम अपने रास्ते से
जाऊँगा. . .
देखूँगा. . .
जाऊँगा. . .

9 दिसंबर 2007

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