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अंजुमन में-
अपने ही हाथों में
एक कमरे में
खूब नारे उछाले गए
टूटते लोगों को
वो दर्द वो बदहाली
पूछा था रात

 

बारह हाइकु

आठों पहर
दौड़े बदहवास
महानगर

जनतंत्र में
बचा तंत्र ही तंत्र
खो गए जन

सबसे खुश
वो जो नहीं जानता
खुशियाँ क्या हैं

परिचित हूँ
जीवन के अंत से
किंतु जिऊँगा

उत्सव है यह
जीवन काटो नहीं
जीवन जियो

संभावनाएँ
जैसे बीज में बंद
विशाल वृक्ष

सब पराए
फिर भी है ये भ्रम
सब अपने

सपना सही
जी तो लिए ही कुछ
खुशी के पल

की बग़ावत
नीव के पत्थरों ने
ढहे महल

विजेता है वो
जिसने बाज़ी नहीं
दिल जीता है

चुने भेड़ों ने
वोट के माध्यम से
स्वयं शिकारी

क्या पा लिया था
ये तब जाना, जब
उसे खो दिया

16 अप्रैल 2006

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