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पगडंडियाँ

रास्ते जब नज़र न आएँगे।
लोग पगडंडियाँ बनाएँगे।।

खुश न हो कर्ज़ के उजालों से
ये अँधेरे भी साथ लाएँगे।।

ख़ौफ़ सारे ग्रहों पे है कि वहाँ
आदमी बस्तियाँ बसाएँगे।।

सुनते-सुनते गुज़र गई सदियाँ
मुल्क़ से अब अँधेरे जाएँगे।।

जीत डालेंगे सारी दुनिया को
वे जो अपने को जीत पाएँगे।।

दूध बेशक पिलाएँ साँपों को
उनसे लेकिन ज़हर ही पाएँगे।

9 मई 2007

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