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जड़ जिसने थी काटी
जहाँ उम्मीद हो ना मरहम की

जिस पे तेरी नज़र
झूठ को सच बनाइए साहब
तल्खियाँ दिल मे
तेरे आने की ख़बर
तोड़ना इस देश को
दिल का दरवाज़ा
दिल का मेरे
दिल के रिश्ते
नीम के फूल
पहले मन में तोल
फूल ही फूल

फूल उनके हाथ में जँचते नही
बात सचमुच
भला करता है जो
मान लूँ मै
मिलने का भरोसा
याद आए तो
याद की बरसातों में
याद भी आते क्यों हो
ये राह मुहब्बत की
लोग हसरत से हाथ मलते हैं

वो ही काशी है वो ही मक्का है
साल दर साल

` जहाँ उम्मीद हो ना मरहम की

झूठ कहने की चाह की जाए
ज़िंदगी क्यों तबाह की जाए

दिल लगाया तो ये ज़रूरी है
चोट खाकर के वाह की जाए

वो अदाओं से मारते हैं मुझे
चाहते पर ना आह की जाए

जब खुदा है बसा तेरे दिल में
काहे काबे की राह की जाए

जहाँ उम्मीद हो ना मरहम की
क्यों वहाँ पर कराह की जाए

सामने जब हो फ़ैसले की घड़ी
अपने दिल से सलाह की जाए

चाँदनी हो या रात हो काली
संग तुम्हारे निबाह की जाए

जो मिला उसमें खुश रहो नीरज
ना किसी से भी डाह की जाए

24 जुलाई 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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