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अनुभूति में प्रमोद कुमार कुश तनहा की रचनाएँ-

नई ग़ज़लें-
आग अश्कों से लगा लेंगे
दरो दीवार की हद से निकल के
रात हमने नींद ली
हम ये समझे थे

अंजुमन में-
ग़म नहीं है
चांद की तलाश में
फिर वही तनहा सफ़र
बाज़ार चल रहा है
बेशक हुआ करे
सर आसमाँ पे रख
वो कहीं टकराएँ तो
सिर्फ़ हम थे
हम चल दिए

 

सिर्फ़ हम थे

शरीके गम़ तुम्हारे सिर्फ़ हम थे
ज़माने के सितम थे सिर्फ़ हम थे

फ़क़त इक बार तुमसे बात की थी
निशाने पे सभी के सिर्फ़ हम थे

तुम्हारे साथ लाखों मुस्कुराए
तुम्हारे साथ सिसके सिर्फ़ हम थे

ग़ज़ल की बात करते थे हज़ारों
ग़ज़ल से बात करते सिर्फ़ हम थे

चलेंगे साथ था वादा तुम्हारा
चले तनहा सफ़र पे सिर्फ़ हम थे

९ अक्तूबर २००५

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