अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में प्रमोद कुमार कुश तनहा की रचनाएँ-

नई ग़ज़लें-
आग अश्कों से लगा लेंगे
दरो दीवार की हद से निकल के
रात हमने नींद ली
हम ये समझे थे

अंजुमन में-
ग़म नहीं है
चांद की तलाश में
फिर वही तनहा सफ़र
बाज़ार चल रहा है
बेशक हुआ करे
सर आसमाँ पे रख
वो कहीं टकराएँ तो
सिर्फ़ हम थे
हम चल दिए

 

वो कहीं टकराएँ तो

चल पड़े ये सोचकर हम वो कहीं टकराएँ तो
हम बहुत आराम से हैं फिर हमें तड़पाएँ तो

वो हमारी आशिकी को खेल ही समझा किए
सीख लें हम भी मुहब्बत वो हमें सिखलाएँ तो

हम न देखेंगे पलट के जानिबे जानाँ कभी
वो हमारे ख्व़ाब का घर छोड़कर के जाएँ तो

फिर खनकता शेर कोई मैं लिखूँ इस रात पे
वो मेरी पलकों पे अपनी जुल्फ़ को बिख़राएँ तो

भूल जाएँगे पुराने ज़ख्म़ की हर टीस को
वो हमें ताज़ा-सा कोई ज़ख्म़ देकर जाएँ तो

एक 'तनहा' की तड़प का आपको अहसास हो
इश्क में दो चार आँसू आपको मिल जाएँ तो

१६ जुलाई २००६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter