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गीत

अंजुमन में—
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
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कर के अहसान
कितनी हैरानी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता

चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलिया
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

 

कर के अहसान

करके अहसान नित जताते हो
दोस्ती क्या यूँ ही निभाते हो

शक के अम्बार दिल में क्यों न लगें
वक़्त-बेवक़्त घर तुम आते हो

याद रखते हो सबके वादों के
अपने वादे ही भूल जाते हो

तुमसे मिलना भी कोई मिलना है
जब भी मिलता हूँ आज़माते हो

तुम ही जानो या राम ही जाने
हँसते हो या हँसी उड़ाते हो

९ नवंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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