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गीतों में-
गीत

अंजुमन में—
आदतें उसकी
उड़ते हैं हज़ारों आकाश में
क्यों न महके
कर के अहसान
कितनी हैरानी
गुनगुनी सी धूप
घर पहुँचने का रास्ता

चेहरों पर हों
छिटकती है चाँदनी
ज़ुल्मों का मारा भी है
तितलिया
तुमसे दिल में
धूम मचाते
नाम उसका
नित नई नाराज़गी
पंछी

बेवजह ही यातना
मन किसी का दर्द से
मुझसे मेरे जनाब
मुँडेरों पर बैठे कौओं
सुराही
हम कहाँ उनको याद आते है
हर एक को
हर किसी के घर का

संकलन में- प्यारी प्यारी होली में

  उड़ते हैं हज़ारों आकाश में

उड़ते हैं हज़ारो आकाश में पंछी
ऊंची नहीं होती परवाज़ें सभी की

इस शहर का जीवन सहमा तो भला क्यों
आतंक की आँधी उस शहर चली थी

इक डूबता बच्चा कैसे वो बचाता
उस शख्स में यारों हिम्मत की कमी थी

बरसी तो यूँ बरसी आँगन भी न भीगा
सावन की घटा थी खुलके तो बरसती

धर्मों में बटा है संसार ये माना
बँट पाई न लेकिन पीड़ाएँ न जहां की

पुरज़ोर हवा में गिरना ही था उनको
ए 'प्राण' घरों की दीवारें थी कच्ची

४ सितंबर २००३

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