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अनुभूति में पुरु मालव की रचनाएँ

अंजुमन में—
अँधेरा सहा है
अब साथ भी उनका
उनसे यों जुदा होकर
क्यों ऐसा
चाहता हूँ
मुश्किलें आती रहीं
रिश्तों से
सैकड़ों ग़म दिल पे

  अब साथ भी उनका

अब साथ भी उनका रहे या न रहे
चलना है मुझे वो चले या न चले

पूछो अभी उससे बहारों का पता
यों रू-ब-रू फिर वो रहे या न रहे

तुम आज जी भर के सीसकने दो मुझे
कल क्या पता ये ग़म रहे या न रहे

हम तो कहेंगे जो भी कहना हैं हम
उसकी है मरज़ी वो सुने या न सुने

मुझे मेरी बस राह आ जाए नज़र
ये रात चाहे फिर ढले या न ढले

है ज़िंदगी का अर्थ ही चलना 'पुरु'
राह मिल गई मंज़िल मिले या न मिले

१५ मार्च २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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