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अनुभूति में पुरु मालव की रचनाएँ

अंजुमन में—
अँधेरा सहा है
अब साथ भी उनका
उनसे यों जुदा होकर
क्यों ऐसा
चाहता हूँ
मुश्किलें आती रहीं
रिश्तों से
सैकड़ों ग़म दिल पे

  अँधेरा सहा है

जिसने ताउम्र अंधेरा सहा है
करके रोशन वो जग को चला है

हादिसे से घिरे क्याच तुम्हींन हो?
देख लो घर मेरा भी जला है

यों ही हर सू नहीं ये चराग़ां
ख़ून मेरा दियों में जला है

दे रहा है सज़ा दर सज़ा तू
कुछ बता भी मेरा ज़ुर्म क्या है

हम जिसको कर सके ना बयाँ 'पुरू'
वो ग़ज़ल ने बख़ूबी कहा है

१५ मार्च २०१०

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