अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शंभुनाथ तिवारी की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
क्या कहें जिंदगी
खूब दिलकश
दिल्ली में
मुश्किल है
लोग क्या से क्या

अंजुमन में-
आँखों के कोर भिगोना क्या
कौन यहाँ खुशहाल

जिगर में हौसला
ज़िंदगी
नहीं कुछ भी
बेकरार क्या करता

हैरानी बहुत है
हौसले मिटते नहीं

 

हैरानी बहुत है

सोचकर मुझको ये हैरानी बहुत है
दुश्मनी अपनों ने ही ठानी बहुत है

जानकर मैं अब तलक अनजान-सा हूँ
हाँ, उसी ने मुट्ठियाँ तानी बहुत है

दे गया है ग़म ज़माने भर का लेकिन
अब उसे क्योंकर पशेमानी बहुत है

चाहता है दिल से पर कहता नहीं क्यों
ये अदा जो भी हो लासानी बहुत है

दोस्ती का भी सिला मुझको मिला ये
ख़ाक़ मैंने उम्र भर छानी बहुत है

ज़िंदगी में फूल भी काँटे भी बेशक़
चंद खुशियाँ तो परेशानी बहुत है

किसलिए ख़ुद पर गुमाँ कोई करेगा
जब यकीनन ज़िदगी फ़ानी बहुत है

रह सकूँ खामोश सब कुछ जानकर भी
गर मिले मुझको ये नादानी बहुत है

आ सके आँखों में गर दो बूँद पानी
ज़िंदगी का बस यही मानी बहुत है

६ अप्रैल २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter