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अनुभूति में शशि जोशी की रचनाएँ 

अंजुमन में--
पहचान तलाशें
बँटवारे की पीड़ा
मुझे टूटन
सबको अपनी रहे ख़बर

 

सबको अपनी रहे ख़बर

सबको अपनी रहे ख़बर,
मौला तू बस इतना कर!

उफ़! ये कैसे मंज़र हैं?
मुर्दे घूमें सड़कों पर।

उड़ने की गुस्ताखी पर,
नोंच दिए चिड़ियों के 'पर'।

महके गुलशन कहाँ गए?
तितली पूछे रो-रोकर।

दिल के भीतर लहर उठी,
फैल गई चुप्पी बनकर।

३ मार्च २००८

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