अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में श्यामसखा श्याम की रचनाएँ-

दोहों में-
मन (१६ दोहे)

नई ग़ज़लें-
उसको अगर परखा नहीं होता
क्या करता
जब मैं छोटा बच्चा था
गूँगे का बयान
दर्द तो जीने नहीं देता मुझे
दिल नहीं करता
हम जैसे यारों से यारी
तेरे शहर में
वो तो जब भी ख़त लिखता है

अंजुमन में-
आस इक भी
खुद से जुदाई
हैं अभी आए

 

खुद से जुदाई

गर खुदा खुद से जुदाई दे
कोई क्यों अपना दिखाई दे

काश मिल जाए कोई अपना
रंजो-ग़म से जो रिहाई दे

जब न काम आई दुआ ही तो
कोई फिर क्योंकर दवाई दे

ख़्वाब बेगाने न दे मौला
नींद तू बेशक पराई दे

तू न हातिम या फरिश्ता है
कोई क्यों तुझको भलाई दे

डूबने को हो सफीना जब
क्यों किनारा तब दिखाई दे

आँख को बीनाई दे ऐसी
हर तरफ़ बस तू दिखाई दे

साथ मेरे तू अकेला हो
अपनी ही बस आश्नाई दे

१० मार्च २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter