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जैसे बाज़ परिंदों में
तनहा क्या करता
तपेगा जो
तुमने जो पथराव जिये
तेरा ही तो हिस्सा हूँ
बच्चे
मैं था तनहा
रस्ता तो इकतरफ़ा था

 

रस्ता तो इकतरफ़ा था

रस्ता तो इक तरफ़ा था
फिर वो कैसे लौट सका।

बचपन तितली- जुगनू-सा
उन लमहों का क्या कहना।

सागर आखिर सागर है
गहरा क्या और उथला क्या।

होकर गुज़रे लोग कई
मैं रस्ता था ठहरा था।

तू दर्पण है तूने खुद
अपना चेहरा देखा क्या।

२८ सितंबर २००९

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