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अनुभूति में बृजेश नीरज की रचनाएँ-

गीतों में-
कुछ अकिंचन शब्द हैं बस
ढूँढती नीड़ अपना
मछली सोच विचार कर रही
सो गए सन्दर्भ तो सब मुँह अँधेरे
स्वप्न की टूटी सिलन
हाकिम निवाले देंगे

छंदमुक्त में-
क्रंदन
कुएँ का मेंढक
गर्मी
दीवार
शब्द

 

कुएँ का मेंढक

सुना है
आकाश का असीम विस्तार
धरती का व्यास
लेकिन सुनने से
अधिक कठिन है जानना।
ज्ञान आसान नहीं
उसके लिए
भरने होते हैं डग
समझना होता है भूगोल
सीखना होता है गणित
दुनिया का
निकलना होता है बाहर
कुएँ से।

और मैं
रोज घूम फिर
पहुँच जाता हूँ वहीं
इस छोटे कमरे में
जहाँ बिखरी है जिंदगी
चार जन
चूल्हा, बर्तन, बिस्तर
सब कुछ।

इसीलिए
इतना ही जान पाया हूँ
अभी तक
दुनिया गोल है।

८ जुलाई २०१३

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