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अनुभूति में चंद्र मोहन की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अंतहीन तारों के बने फंदे 
खेतों की रात
जमीन पर जमीन की कविता
यह जाने का समय है
सूरज तुम्हारा जीना देख रहा है

 

खेतों की रात

खेतों की रात है और गज़ल गले में दब गई है
इश्क जिसे आप कहते हैं 
आपके बंगले में ही कैद
बासी कविता बाँच रहा है

हाशिए पर मैं हूँ और खेत पर पहरा दे रहा हूँ
जंगलों में आपकी जिसीबी दौड़ रही है
आदिवासी आसाम का
घाही है आपकी बुकेट से!

चुनाव को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
कौन मारा गया
कौन शहीद हो गया
कौन पेड़ रोपते वक्त यहाँ से खदेड़ा गया 
यह तो आने वाले दिनों में
बाबा के हाथों का लगाया बाँस बयान देगा साब! 

अभी तो मैं
श्रमिकों के लिए
लोहा लेना चाहता हूँ
अभी तो मैं इस पृथ्वी के लिए
आखरी अमरुद छोड़ना चाहता हूँ
अभी तो मैं
आपके दी हुई दुनिया को टोकना चाहता हूँ

मैं आखरी खेत हूँ 
आखरी बैल का खाद
खेतों में छींटना चाहता हूँ 
पुली तांबूल का
रोपना चाहता हूँ

कि मेरी शहादत की निशानियाँ बची रहें
बिना मजार के

१ मई २०२३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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