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अनुभूति में धर्मेन्द्र कुमार सिंह 'सज्जन' की रचनाएँ-

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कहे कौन उठ

जितना ज्यादा हम लिखते हैं
दिल है तारा
बाँध
मौसम तो देखिये

क्षणिकाओं में-
बारह क्षणिकाएँ

अंजुमन में-
अच्छे बच्चे
काश यादों को करीने से
गरीबों के लहू से
चंदा तारे बन रजनी में
चिड़िया की जाँ
छाँव से सटकर खड़ी है धूप
जो भी मिट गए तेरी आन पर
दे दी अपनी जान
निजी पाप की
मिल नगर से

छंदमुक्त में-
अम्ल, क्षार और गीत
दर्द क्या है
मेंढक
यादें
हम तुम

 

जो भी मिट गए तेरी आन पर

जो-भी-मिट-गए-तेरी-आन-पर-वो-सदा-रहेंगे-यहीं-कहीं
तेरी-माटी-में-वो-ही-फूल-बन-के-खिला-करेंगे-यहीं-कहीं

-वतन-मेरे,-नहीं-कर सके,-कभी-काल-भी,-ये-जुदा-हमें
मैं-मरा-तो-क्या-मैं-जला-तो-क्या-मेरे-अणु-मिलेंगे-यहीं-कहीं

तू-ही-घोसला-तू ही है शजर-तू-चमन-मेरा-तू-ही-आसमाँ
तुझे छोड़ के, जो कभी उड़ा, मेरे पर गिरेंगे यहीं कहीं

कभी-धूप-ने-जो-उड़ा-दिया-मुझे-बादलों-सा-बना-के-तो
मेरे अंश लौट के आएँगें औ’ बरस पड़ेंगे यहीं कहीं

कोई दोजखों में जला करे कोई जन्नतों में घुटा करे
जो किसान हैं मेरे देश के वो सदा उगेंगे यहीं कहीं

२३ अप्रैल २०१२

 

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