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अनुभूति में डॉ. जगदीश व्योम की रचनाएँ—

कविताओं में—
अक्षर
छंद
रात की मुट्ठी
सो गई है मनुजता की संवेदना
हे चिर अव्यय हे चिर नूतन

गीतों में—
आहत युगबोध के
इतने आरोप न थोपो
न जाने क्या होगा
पीपल की छाँव
बाज़ीगर बन गई व्यवस्था
हाइकु नवगीत

दोहों में—
ग्यारह दोहे

हाइकु में-
सात हाइकु

संकलन में—
तुम्हें नमन- किसकी है तस्वीर
नव वर्ष अभिनंदन- दादी कहती हैं
हिंदी के 100 सर्वश्रेष्ठ प्रेमगीत- पिउ पिउ न पपिहरा बोल

 

पीपल की छाँव

पीपल की छाँव निर्वासित हुई है
और पनघट को मिला वनवास
फिर भी मत हो बटोही उदास

प्रात की प्रभाती लाती हादसों की पाती
उषा किरन आकर सिंदूर पोंछ जाती
दाने की टोह में फुदकती गौरैया का
खंडित हुआ विश्वास
फिर भी मत हो बटोही उदास

अभिशापित चकवी का रात भर अहंकना
मोरों का मेघों की चाह में कुहकना
कोकिल का कुंठित कलेजा कराह उठा
कुहु-कुहु का संत्रास
फिर भी मत हो बटोही उदास

सूखी सूखी कोंपल हैं आम नहीं बौरे
खुले आम घूम रहे बदचलनी भौंरे

माली ने दो घूँट मदिरा की ख़ातिर
गिरवी रखा मधुमास
फिर भी मत हो बटोही उदास

सृष्टि ने ये कैसा अभिशप्त बीज बोया
व्योम की व्यथा को निरख इंद्रधनुष रोया
प्यासे को दे अंजुरी भर न पानी
भगीरथ का करें उपहास
फिर भी मत हो बटोही उदास

माना कि अंत हो गया है वसंत का
संभव है पतझर यही हो बस अंत का
सारंग न ओढ़ो उदासी की चादर
लौटेगा मधुमास
फिर क्यों होता बटोही उदास
अब मत हो तू बटोही उदास

1 अप्रैल 2005

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