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अनुभूति में डॉ. जगदीश व्योम की रचनाएँ—

कविताओं में—
अक्षर
छंद
रात की मुट्ठी
सो गई है मनुजता की संवेदना
हे चिर अव्यय हे चिर नूतन

गीतों में—
आहत युगबोध के
इतने आरोप न थोपो
न जाने क्या होगा
पीपल की छाँव
बाज़ीगर बन गई व्यवस्था
हाइकु नवगीत

दोहों में—
ग्यारह दोहे

हाइकु में-
सात हाइकु

संकलन में—
तुम्हें नमन- किसकी है तस्वीर
नव वर्ष अभिनंदन-– दादी कहती हैं
हिंदी के 100 सर्वश्रेष्ठ प्रेमगीत- पिउ पिउ न पपिहरा बोल

 

रात की मुट्ठी

वक्त का आखेटक
घूम रहा है
शर संधान किए
लगाए है टकटकी
कि हम
करें तनिक-सा प्रमाद
और, वह-
दबोच ले हमें
तहस नहस कर दे
हमारे मिथ्याभिमान को
पर
आएगा सतत नैराश्य ही
उसके हिस्से में
क्यों कि
हमने पहचान ली है
उसकी पगध्वनि
दूर हो गया है हमसे
हमारा तंद्रिल व्यामोह
हम ने पढ़ लिए हैं
समय के पंखों पर उभरे
पुलकित अक्षर
जिसमें लिखा है कि -
आओ!
हम सब मिल कर
खोलें, रात की मुट्ठी को
जिसमें कैद है
समूचा सूरज।

1 अप्रैल 2005  

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