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निहायत छोटा आदमी

उतना दुखी नहीं होता
निहायत छोटा आदमी
जितना दिखता है

निहायत छोटा आदमी
छोटी-छोटी चीजों से सँभाल लेता है ज़िंदगी
नाक फटने पर मिल भर जाए गोबर
बुखार में तुलसी डली चाय
मधुमक्खी काटने पर हल्दी

जितना दिखता है
उतना काँइयाँ नहीं होता
निहायत छोटा आदमी

निहायत छोटा आदमी
नई सब्जी का स्वाद पड़ोस बाँट आता है
उठ खड़ा होता है मामूली हाँक पर
औरों के बोल पर जी भर के नाचता

जितना दिखता है
उतना पिछड़ा नहीं होता
निहायत छोटा आदमी

निहायत छोटा आदमी
सिरहाने रखता है पुरखों का इतिहास
बूझता है अपना सारा भूगोल
पत्ती पर ओस, जंगल के रास्ते, चिडि़यों का दर्द
पढ़े बगैर बड़ी-बड़ी पोथी

जितना दिखता है
उतना छोटा नहीं होता
निहायत छोटा आदमी

निहायत छोटा आदमी
लहुलूहान पाँवों से भी नाप लेता है अपना रास्ता
निहायत छोटा आदमी के निहायत छोटे होते हैं पाँव
पर डग भरता है बड़े बड़े

९ फरवरी २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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